फासला इतना रखने की ज़रूरत क्या थी,
मुझसे जुदा होने की ज़रूरत क्या थी,
अब तो मुझसे दूर बैठे हो,
पर पहले मुज़से नज़रे मिलाने की ज़रूरत क्या थी.
मेरा साथ छोड़ जाने की ज़िद्द क्या थी,
सब रिश्ते नाते तोड़ जाने की ज़िद्द क्या थी,
हम तो पहले ही तन्हाई से लढ रहे थे,
हमारा हाथ थामने की ज़िद्द क्या थी.
मेरा गम दुनिया को बताने की ज़रूरत क्या थी,
चौराहे मे मेरा हाल बताने की ज़रूरत क्या थी,
आपके नाम से तो हम पहले ही बदनाम थे,
और ये अंजाम जोड़ने की ज़रूरत क्या थी
No comments:
Post a Comment