Wednesday, May 30, 2012

और कुछ नही

ज़िंदगी मे है उम्मिदो की नहर और कुछ नही,
दिल मैं गिरा हैं दर्द का कहर ओर कुछ नही.

मुझे भी उजाले मे जीने का मंन करता है,
इस्स आबो हवा मे ढल जाने को दिल करता है,
पर अंधेरो मे है मेरी डगर ओर कुछ नही

अब दिल मचल मचल कर गाता है,
बेबसी को हटाकर प्यार की धुन सुनता है,
पर यादों की बेबसी चुरा ले जाती है मेरे लबोसे स्वर और कुछ नही.

मन तिनका बन आशिया बनाने का सपना सजाता है,
तूज़ संग हर लम्हा गुजरनेका सपना संजोता है,
पर बदकीस्मती जला जाती है मेरे सपनो का घर और कुछ नही

इन सबका दोष मैं किसको दू,
तेरी हैवान नज़र या किस्मत को दू,
ज़िंदगी के अनचाहे आलम के इल्ज़ाम लेता हूँ अपने सिर और कुछ नही

No comments:

Post a Comment